मंगलवार, 24 जनवरी 2017
कौन है चंद्रवंशी ? तो लो हमें अच्छा से जान लो हम ही वो चंद्रवंशी है जो महाभारत के हीरो है ये रहा हमारा परिचय






सोमवार, 14 मार्च 2016


नमस्कार चंद्रवंशी भाइयों , बहनों  और दोस्तों !
मैं चंद्रशेखर कुमार चंद्रवंशी,
 चंद्रवंशी समाज के लिए एक ऐसे वेबसाइट बना रहा हूँ  जिसके जरिये देश , विदेश में जितने भी चंद्र्वाशी है उनको एक साथ एकजुट किया जा सकेगा l  ताकि हमलोगों की कितनी संख्या है उसका पता चल सके और उनलोगों का भी लिस्ट बना सके जो चंद्रवंशी समाज के लिए सच में कुछ करना चाहता है और देश में फिर से चंद्रवंशी समाज का परचम लहरा सके और चंद्रवंशी समाज में जितने भी गरीब बेबस है उसकी मदद कर सके l आज सारा समाज का अपना अच्छा सा वेबसाइट है और वेलोग एकजुट होकर कार्य कर रहे हैं l
 इसलिए मैं एक ऐसा वेबसाइट तैयार कर रहा हूँ जिसके जरिये चंद्रवंशी समाज के  लोग भी  Free में   Register करके  मेम्बर बन सकेंगे और जिनलोगों का अपना व्यसाय है
देश में चन्द्रवंशी के वंशज
इतिहासकारों के अनुसार (खासकरके एच.एच. रिसले) सभी चन्द्रवंशी क्षत्रीय काल एवं विभिन्नता के कारण भिन्न-भिन्न नामों से प्रसिद्ध हुए । मगध के शासक महापदमनन्द उर्फ धनानन्द के अत्याचार और कहर से भागे(रवाना) हुए चन्द्रवंशी क्षत्रीय रमानी/ रवानी या कहलाए । ‘कहार’ की कोई जाति नहीं थी । कहारी पेशा था,ये पालकी या बहंगी ढ़ोते थे या फिर कंध का प्रयोग कर काम करते थे । जैसे पानी भरना या अन्य सेवा करना । इस जाति का नाम 8वीं शताब्दी के राजवंशों ने दास-दासी बनाकर जाति का दर्जा दे दिया । इससे पहले रमन करने वाला ‘रवानी’ या रमाणी कहलाए । वैदिक काल में यह विशुद्ध चन्द्रवंशी क्षत्रीय थे । एल.एम.जोपलिंग,आई.सीएस मजिस्ट्रेय ने 1930 और मिस्टर ए.सी टर्नर (जिप्टी सेक्रेटरी ऑफ द गर्वमेंट ऑफ युनाइटेड प्रोवियंस,सेनसस ऑफ इंडिया 1930 के निर्णयों के मद्देनजर यह पारित किया गया कि सारे दावों और सबूतों को देखते हुए साबित किया गया कि ‘कहार’ कोई जाति का नाम नहीं है । यह कंधे का प्रयोग करने कर काम करते थे । जैसे पालकी ढ़ोना,बहंगी ढ़ोना,पानी फरना या अन्य सेवा कार्य करना । सभी चन्द्रवंशी काल एवं कर्म के आधार पर कहार कहे जाने लगे । यह चन्द्रवंशी क्षत्रीय हैं । सभी चन्द्रवंशी क्षत्रीय 1931 के अनुसार जनगणना में जाति के नाम में चन्द्रवंशी लगाने लगे । भारत के विभिन्न राज्यों में चन्द्रवंशियों की उपजातियां और पदवी प्रचलन में है-
आज बात बिहार की करेंगे तो निम्न उपजातियां या फिर टाइटिल का चलन है...
चन्दरवंशी,कहारद्ध,रमाणी,रवानी,कर्मकर,भोजपुरिया,बाइसी,तेईसी,कमकर,धूस,गोड़,खरवार,राजवंशी,कोंच,खटवे और क्षत्रपति के नाम से जाने जाते हैं,यह अत्यंत पिछड़ी जाति में आते हैं
शनिवार, 15 अगस्त 2015
जरासंध महाभारत कालीन मगध राज्य का नरेश था। वह बहुत ही शक्तिशाली राजा था
जरासंध के पिता थे मगधनरेश महाराज यल्ज्क् और उनकी दो पटरानियां थी। वह दोनो ही को एकसमान चाहते थे। बहुत समय व्यतीत हो गया और वे बूढ़े़ हो चले थे, लेकिन उनकी कोई संतान नहीं थी। तब एक बार उन्होंने सुना की उनके राज्य में ऋषि चंडकौशिक पधारे हुए हैं और वे एक आम के वृक्ष के नीचे विराजमान हैं। यह सुनते ही राजन आशापूर्ण होकर ऋषि से मिलने चल दिए। ऋषि के पास पहुँच कर उन्होंने ऋषि को अपना दुख कह सुनाया। राजा का वृतांत सुनकर ऋषि को दया आ गई और उन्होंने नरेश को एक आम दिया और कहा की इसे अपनी रानी को खिला देना। लेकिन चूंकि उनकी दो पत्नीयां थी और वे दोनो ही से एक समान प्रेम करते थे, इसलिए उन्होंए उस आम के बराबर टुकड़े करके अपनी दोनो रानियों को खिला दिया। इससे दोनो रानियों को आधे-आधे पुत्र हुए। भय के मारे उन्होंने उन दोनो टुकड़ो को वन में फिकवा दिया। तभी वहाँ से जरा नामक एक राक्षसी भी जा रही थी। उसने माँस के उन दोनों लोथड़ों को देखा और उसने दायां लोथड़ा दाएं हाथ में और बायां लोथड़ा बाएं हाथ में लिया जिससे वह दोनो टुकडे जुड़ गए। जुड़ते ही उस बालक ने बहुत ज़ोर की गर्जना की जिससे भयभीत होकर जरा राक्षसी भाग गई और राजभवन में दोनों रानियों की छाती से दुध उतर आया। इसीलिए उसका नाम जरासंध हुआ। इस प्रकार जरासंध का जन्म हुआ।
इंद्रप्रस्थ नगरी का निर्माण पूरा होने के पश्चात एक दिन नारद मुनि ने महाराज युधिष्ठिर को उनके पिता का यह संदेश सुनाया की अब वे राजसूय यज्ञ करें। इस विषय पर महाराज ने श्रीकृष्ण से बात की तो उन्होंने भी युधिष्ठिर को राजसूय यज्ञ करने के लिए प्रोत्साहित किया, लेकिन महाराज युधिष्ठिर के चक्रवर्ती सम्राट बनने के मार्ग में केवल एक रोड़ा था, मगध नरेश जरासंध, जिसे परास्त किए बिना वह सम्राट नहीं बन सकते थे और ना ही उसे रणभूमि मे परास्त किया जा सकता था। इस समस्या का समाधान करने के लिए श्रीकृष्ण, भीम और अर्जुन के साथ ब्राह्मणों का भेष बनाकर मगध की ओर चल दिए। वहाँ पहुँच कर जरासंध ने उन्हें ब्राह्मण समझकर कुछ माँग लेने के लिए कहा लकिन उस समय ब्राह्मण भेषधारी श्रीकृष्ण ने कहा की अभी उनके दोनो मित्रों का मौन व्रत है जो अर्ध रात्रि में समाप्त होगा। तब जरासंध ने अर्ध रात्रि तब ही आने का वचन दिया और उन्हें ब्राह्मण कक्ष मे ठहराया।
तब अर्धरात्रि में वह आया लेकिन उसे उन तीनों पर कुछ संदेह हुआ की वे ब्राह्मण नहीं है कयोकि वे शरीर से क्छ्त्रीय जैसे लग रहे थे उस्ने अपने सम्देह को प्रकट किया और उन्हे उनके वास्तविक रूप में आने को कहा एव्म उन्हे पहचान लिया। तब श्रीकृष्ण की खरी-खोटी सुनने के बाद उसे क्रोध आ गया और उस्ने कहा की उन्हें जो भी चाहिए वे माँग ले और यहाँ से चले जाएं। तब उन्होंने ब्राह्मण भेष में ही जरासंध को मल्लयुद्ध करने के लिए कहा और फिर अपना वास्तविक परिचय दिया। जरासम्घ एक वीर योधा था इसलिए उसने मल्ल युद्ध के लिए भीम को ही चुना।
तब अगले उसने भीम के साथ मल्लभूमि में मल्ल युद्ध किया। यह युद्ध लगभग २८ दिनो तक चलता रहा लेकिन जितनी बार भीमसेन उसके दो टुकड़े करते वह फिर से जुड़ जाता। इस पर श्रीकृष्ण ने घास की एक डंडी की सहायता से भीम को संकेत किया की इस बार वह उसके टुकड़े कर के दोनों टुकड़े अलग-अलग दिशा में फेंके। तब भीम ने वैसा ही किया और इस प्रकार जरासंध का वध हुआ।
तब उसका वध करके उन तीनों ने उसके बंदीगृह में बंद सभी ८६ राजाओं को मुक्त किया और श्रीकृष्ण ने जरासंध के पुत्र सहदेव को राजा बनाया। सहदेव ने आगे चलकर के महाभारत के युध मे पान्डवो का साथ दिया।