सोमवार, 14 मार्च 2016
8:13 pm
| प्रस्तुतकर्ता
Chanda Shekhar Kumar
देश में चन्द्रवंशी के वंशज
इतिहासकारों के अनुसार (खासकरके एच.एच. रिसले) सभी चन्द्रवंशी क्षत्रीय काल एवं विभिन्नता के कारण भिन्न-भिन्न नामों से प्रसिद्ध हुए । मगध के शासक महापदमनन्द उर्फ धनानन्द के अत्याचार और कहर से भागे(रवाना) हुए चन्द्रवंशी क्षत्रीय रमानी/ रवानी या कहलाए । ‘कहार’ की कोई जाति नहीं थी । कहारी पेशा था,ये पालकी या बहंगी ढ़ोते थे या फिर कंध का प्रयोग कर काम करते थे । जैसे पानी भरना या अन्य सेवा करना । इस जाति का नाम 8वीं शताब्दी के राजवंशों ने दास-दासी बनाकर जाति का दर्जा दे दिया । इससे पहले रमन करने वाला ‘रवानी’ या रमाणी कहलाए । वैदिक काल में यह विशुद्ध चन्द्रवंशी क्षत्रीय थे । एल.एम.जोपलिंग,आई.सीएस मजिस्ट्रेय ने 1930 और मिस्टर ए.सी टर्नर (जिप्टी सेक्रेटरी ऑफ द गर्वमेंट ऑफ युनाइटेड प्रोवियंस,सेनसस ऑफ इंडिया 1930 के निर्णयों के मद्देनजर यह पारित किया गया कि सारे दावों और सबूतों को देखते हुए साबित किया गया कि ‘कहार’ कोई जाति का नाम नहीं है । यह कंधे का प्रयोग करने कर काम करते थे । जैसे पालकी ढ़ोना,बहंगी ढ़ोना,पानी फरना या अन्य सेवा कार्य करना । सभी चन्द्रवंशी काल एवं कर्म के आधार पर कहार कहे जाने लगे । यह चन्द्रवंशी क्षत्रीय हैं । सभी चन्द्रवंशी क्षत्रीय 1931 के अनुसार जनगणना में जाति के नाम में चन्द्रवंशी लगाने लगे । भारत के विभिन्न राज्यों में चन्द्रवंशियों की उपजातियां और पदवी प्रचलन में है-
आज बात बिहार की करेंगे तो निम्न उपजातियां या फिर टाइटिल का चलन है...
चन्दरवंशी,कहारद्ध,रमाणी,रवानी,कर्मकर,भोजपुरिया,बाइसी,तेईसी,कमकर,धूस,गोड़,खरवार,राजवंशी,कोंच,खटवे और क्षत्रपति के नाम से जाने जाते हैं,यह अत्यंत पिछड़ी जाति में आते हैं
इतिहासकारों के अनुसार (खासकरके एच.एच. रिसले) सभी चन्द्रवंशी क्षत्रीय काल एवं विभिन्नता के कारण भिन्न-भिन्न नामों से प्रसिद्ध हुए । मगध के शासक महापदमनन्द उर्फ धनानन्द के अत्याचार और कहर से भागे(रवाना) हुए चन्द्रवंशी क्षत्रीय रमानी/ रवानी या कहलाए । ‘कहार’ की कोई जाति नहीं थी । कहारी पेशा था,ये पालकी या बहंगी ढ़ोते थे या फिर कंध का प्रयोग कर काम करते थे । जैसे पानी भरना या अन्य सेवा करना । इस जाति का नाम 8वीं शताब्दी के राजवंशों ने दास-दासी बनाकर जाति का दर्जा दे दिया । इससे पहले रमन करने वाला ‘रवानी’ या रमाणी कहलाए । वैदिक काल में यह विशुद्ध चन्द्रवंशी क्षत्रीय थे । एल.एम.जोपलिंग,आई.सीएस मजिस्ट्रेय ने 1930 और मिस्टर ए.सी टर्नर (जिप्टी सेक्रेटरी ऑफ द गर्वमेंट ऑफ युनाइटेड प्रोवियंस,सेनसस ऑफ इंडिया 1930 के निर्णयों के मद्देनजर यह पारित किया गया कि सारे दावों और सबूतों को देखते हुए साबित किया गया कि ‘कहार’ कोई जाति का नाम नहीं है । यह कंधे का प्रयोग करने कर काम करते थे । जैसे पालकी ढ़ोना,बहंगी ढ़ोना,पानी फरना या अन्य सेवा कार्य करना । सभी चन्द्रवंशी काल एवं कर्म के आधार पर कहार कहे जाने लगे । यह चन्द्रवंशी क्षत्रीय हैं । सभी चन्द्रवंशी क्षत्रीय 1931 के अनुसार जनगणना में जाति के नाम में चन्द्रवंशी लगाने लगे । भारत के विभिन्न राज्यों में चन्द्रवंशियों की उपजातियां और पदवी प्रचलन में है-
आज बात बिहार की करेंगे तो निम्न उपजातियां या फिर टाइटिल का चलन है...
चन्दरवंशी,कहारद्ध,रमाणी,रवानी,कर्मकर,भोजपुरिया,बाइसी,तेईसी,कमकर,धूस,गोड़,खरवार,राजवंशी,कोंच,खटवे और क्षत्रपति के नाम से जाने जाते हैं,यह अत्यंत पिछड़ी जाति में आते हैं
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