सोमवार, 14 मार्च 2016
11:37 pm
| प्रस्तुतकर्ता
Chanda Shekhar Kumar
नमस्कार चंद्रवंशी
भाइयों , बहनों और दोस्तों !
मैं चंद्रशेखर कुमार
चंद्रवंशी,
चंद्रवंशी समाज के लिए एक ऐसे वेबसाइट बना रहा
हूँ जिसके जरिये देश , विदेश में जितने भी
चंद्र्वाशी है उनको एक साथ एकजुट किया जा सकेगा l ताकि हमलोगों की कितनी संख्या है उसका पता चल
सके और उनलोगों का भी लिस्ट बना सके जो चंद्रवंशी समाज के लिए सच में कुछ करना
चाहता है और देश में फिर से चंद्रवंशी समाज का परचम लहरा सके और चंद्रवंशी समाज
में जितने भी गरीब बेबस है उसकी मदद कर सके l आज सारा समाज का अपना अच्छा सा
वेबसाइट है और वेलोग एकजुट होकर कार्य कर रहे हैं l
इसलिए मैं एक ऐसा वेबसाइट तैयार कर रहा हूँ जिसके
जरिये चंद्रवंशी समाज के लोग भी Free में Register करके मेम्बर बन सकेंगे और जिनलोगों का अपना व्यसाय है
8:13 pm
| प्रस्तुतकर्ता
Chanda Shekhar Kumar
देश में चन्द्रवंशी के वंशज
इतिहासकारों के अनुसार (खासकरके एच.एच. रिसले) सभी चन्द्रवंशी क्षत्रीय काल एवं विभिन्नता के कारण भिन्न-भिन्न नामों से प्रसिद्ध हुए । मगध के शासक महापदमनन्द उर्फ धनानन्द के अत्याचार और कहर से भागे(रवाना) हुए चन्द्रवंशी क्षत्रीय रमानी/ रवानी या कहलाए । ‘कहार’ की कोई जाति नहीं थी । कहारी पेशा था,ये पालकी या बहंगी ढ़ोते थे या फिर कंध का प्रयोग कर काम करते थे । जैसे पानी भरना या अन्य सेवा करना । इस जाति का नाम 8वीं शताब्दी के राजवंशों ने दास-दासी बनाकर जाति का दर्जा दे दिया । इससे पहले रमन करने वाला ‘रवानी’ या रमाणी कहलाए । वैदिक काल में यह विशुद्ध चन्द्रवंशी क्षत्रीय थे । एल.एम.जोपलिंग,आई.सीएस मजिस्ट्रेय ने 1930 और मिस्टर ए.सी टर्नर (जिप्टी सेक्रेटरी ऑफ द गर्वमेंट ऑफ युनाइटेड प्रोवियंस,सेनसस ऑफ इंडिया 1930 के निर्णयों के मद्देनजर यह पारित किया गया कि सारे दावों और सबूतों को देखते हुए साबित किया गया कि ‘कहार’ कोई जाति का नाम नहीं है । यह कंधे का प्रयोग करने कर काम करते थे । जैसे पालकी ढ़ोना,बहंगी ढ़ोना,पानी फरना या अन्य सेवा कार्य करना । सभी चन्द्रवंशी काल एवं कर्म के आधार पर कहार कहे जाने लगे । यह चन्द्रवंशी क्षत्रीय हैं । सभी चन्द्रवंशी क्षत्रीय 1931 के अनुसार जनगणना में जाति के नाम में चन्द्रवंशी लगाने लगे । भारत के विभिन्न राज्यों में चन्द्रवंशियों की उपजातियां और पदवी प्रचलन में है-
आज बात बिहार की करेंगे तो निम्न उपजातियां या फिर टाइटिल का चलन है...
चन्दरवंशी,कहारद्ध,रमाणी,रवानी,कर्मकर,भोजपुरिया,बाइसी,तेईसी,कमकर,धूस,गोड़,खरवार,राजवंशी,कोंच,खटवे और क्षत्रपति के नाम से जाने जाते हैं,यह अत्यंत पिछड़ी जाति में आते हैं
इतिहासकारों के अनुसार (खासकरके एच.एच. रिसले) सभी चन्द्रवंशी क्षत्रीय काल एवं विभिन्नता के कारण भिन्न-भिन्न नामों से प्रसिद्ध हुए । मगध के शासक महापदमनन्द उर्फ धनानन्द के अत्याचार और कहर से भागे(रवाना) हुए चन्द्रवंशी क्षत्रीय रमानी/ रवानी या कहलाए । ‘कहार’ की कोई जाति नहीं थी । कहारी पेशा था,ये पालकी या बहंगी ढ़ोते थे या फिर कंध का प्रयोग कर काम करते थे । जैसे पानी भरना या अन्य सेवा करना । इस जाति का नाम 8वीं शताब्दी के राजवंशों ने दास-दासी बनाकर जाति का दर्जा दे दिया । इससे पहले रमन करने वाला ‘रवानी’ या रमाणी कहलाए । वैदिक काल में यह विशुद्ध चन्द्रवंशी क्षत्रीय थे । एल.एम.जोपलिंग,आई.सीएस मजिस्ट्रेय ने 1930 और मिस्टर ए.सी टर्नर (जिप्टी सेक्रेटरी ऑफ द गर्वमेंट ऑफ युनाइटेड प्रोवियंस,सेनसस ऑफ इंडिया 1930 के निर्णयों के मद्देनजर यह पारित किया गया कि सारे दावों और सबूतों को देखते हुए साबित किया गया कि ‘कहार’ कोई जाति का नाम नहीं है । यह कंधे का प्रयोग करने कर काम करते थे । जैसे पालकी ढ़ोना,बहंगी ढ़ोना,पानी फरना या अन्य सेवा कार्य करना । सभी चन्द्रवंशी काल एवं कर्म के आधार पर कहार कहे जाने लगे । यह चन्द्रवंशी क्षत्रीय हैं । सभी चन्द्रवंशी क्षत्रीय 1931 के अनुसार जनगणना में जाति के नाम में चन्द्रवंशी लगाने लगे । भारत के विभिन्न राज्यों में चन्द्रवंशियों की उपजातियां और पदवी प्रचलन में है-
आज बात बिहार की करेंगे तो निम्न उपजातियां या फिर टाइटिल का चलन है...
चन्दरवंशी,कहारद्ध,रमाणी,रवानी,कर्मकर,भोजपुरिया,बाइसी,तेईसी,कमकर,धूस,गोड़,खरवार,राजवंशी,कोंच,खटवे और क्षत्रपति के नाम से जाने जाते हैं,यह अत्यंत पिछड़ी जाति में आते हैं
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